ग्लोबल वार्मिंग: कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की चेतावनी
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) की नई रिपोर्ट के अनुसार, यदि पृथ्वी का तापमान इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो सितंबर 2029 तक यह 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। यह आंकड़ा जलवायु परिवर्तन के खतरनाक मोड़ की ओर इशारा करता है, क्योंकि इससे पहले वैज्ञानिकों ने 2030 के दशक की शुरुआत में इस सीमा तक पहुंचने का अनुमान लगाया था।
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वर्तमान स्थिति
- तापमान वृद्धि: धरती का तापमान औद्योगिक युग से पहले के स्तर की तुलना में 1.38°C अधिक हो चुका है।
- पेरिस समझौते का लक्ष्य: 2016 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान को 1.5°C के अंदर सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए यह लक्ष्य मुश्किल नजर आ रहा है।
प्रभाव और चुनौतियां
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: 1.5°C सीमा पार होने से जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव तेज़ और अकल्पनीय हो सकते हैं।
- वैश्विक प्रभाव: कोरल रीफ्स का नुकसान, जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ना, और जैव विविधता पर भारी नुकसान हो सकता है।
- भारत में स्थिति: भारत में भी रिकॉर्डतोड़ गर्मी दर्ज की गई है, जिसमें दिसंबर, जनवरी और फरवरी अब तक के सबसे गर्म महीने रहे हैं।
FAQs
- क्या 2029 तक तापमान 1.5°C की सीमा पार कर जाएगा?
हां, कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के अनुसार, यदि तापमान इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो सितंबर 2029 तक यह सीमा पार हो सकती है। - पेरिस समझौते का मुख्य लक्ष्य क्या है?
पेरिस समझौते का मुख्य लक्ष्य वैश्विक तापमान को 1.5°C के अंदर सीमित रखना है। - 1.5°C सीमा पार होने के क्या प्रभाव हो सकते हैं?
इससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव तेज़ हो सकते हैं, जैसे कोरल रीफ्स का नुकसान, जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ना, और जैव विविधता पर नुकसान।